थी यह ज़ैनब की सदा, कैसा ज़माना आ गया
हम हैं बाबा बेरिदा, कैसा ज़माना आ गया
छीनते हैं मेरे सर से चादर-ए-ज़हरा लईं
ज़ुल्म की है इंतेहा कैसा ज़माना आ गया
पालने में दे के लोरी मैं सुलाती थी जिसे
उसका झूला भी जला कैसा ज़माना आ गया
तीर असग़र के लगा बाज़ू कटे अब्बास के
अये ज़मीन-ए-करबला कैसा ज़माना आ गया
ब्याह के दिन आने से पहले ही अकबर मर गया
रो के लैला ने कहा कैसा ज़माना आ गया
था नबी का जो नवासा और अली का लाडला
क़त्ल प्यासा हो गया कैसा ज़माना आ गया
देतें हैं आदा अज़ीयत हमको बेकस जान कर
क्या नहीं तुमको पता, कैसा ज़माना आ गया
नाना की उम्मत पर इतने ज़ुल्म ढाएँ हैं के बस
मैं करूँ किससे गिला, कैसा ज़माना आ गया
हल्क़े शाहे करबला पर तीन दिन की प्यास में
शिम्र का खंजर चला, कैसा ज़माना आ गया
कहतीं थी "आलम" यह बिन्ते फ़ातिमा सर पीट कर
लुट गया कुनबा मेरा, कैसा ज़माना आ गया
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Thi yeh Zainab ki sada kaisa zamana aa gaya
Hum hain Baba berida kaisa zamana aa gaya
Cheente hai sar se mere Chadar-e-Zehra laeen
Zulm ki hai inteha, kaisa zamana aa gaya
Paalne mein de ke lori, main sulaati thi jise
Uska jhoola bhi jala, kaisa zamana aa gaya
Teer Asghar ke laga, baazu kate Abbas ke
Aye Zameen-e-Karbala, kaisa zamana aa gaya
Byah ke din aane se pahle hi Akbar mar gaye
Ro ke Laila ne kaha, kaisa zamana aa gaya
Tha Nabi ka jo Nawaasa aur Ali ka laadla
Qatl pyaasa ho gaya, kaisa zamana aa gaya
Dete hain aada aziyat humko bekas jan kar
Kya nahin tumko pata, kaisa zamana aa gaya
Nana ki ummat par itne zulm dhayen hain ke bus
Main karoon kis se gila, kaisa zamana aa gaya
Halq-e-Shah-e-Karbala par teen din ki pyaas me
shimr ka khanjar chala, kaisa zamana aa gaya
Kahtee thee "Aalam" yeh Binte Fatema sar peet kar
Lut gaya kunba mera, kaisa zamana aa gaya
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