ऊँचा रहे अपना अलम.......
जब तक है दौर-ए-आसमाँ
सुनले ये हर पीर-ओ-जवाँ
आवाज़ पर शब्बीर की बढ़ता रहे ये कारवाँ
रुकने ना पाए ये कदम
ऊँचा रहे अपना अलम.....
हर कल्ब पर छाते चलो
दुनिया को बतलाते चलो
एक एक महाज़-ए-ज़ुल्म की तस्वीर दिखलाते चलो
हर दिल में भर दो शह का ग़म
ऊँचा रहे अपना अलम.....
कब तक ना मानेगा कोई
वो वक़्त आएगा कभी
हर क़ल्ब पर छा जाएगा अपना हुसैन-इबने-अली
इस दर पे हर सर होगा ख़म
ऊँचा रहे अपना अलम.....
जब भी कोई मुश्किल पड़ी
दुनिया इसी दर पर झुकी
सीनों से बल खाकर इधर उठ्ठी सदा-ए-या अली
उधर निकला बातिल का दम
ऊँचा रहे अपना अलम.....
ये परचम-ए-अब्बास है
टूटे दिलों की आस है
अब तक इसी परचम तले ज़िंदा किसी की प्यास है
जिसने सहे लाखों सितम
ऊँचा रहे अपना अलम.....
अब्बास है नाम-ए-वफ़ा
आग़ाज़-ओ-अंजाम-ए-वफ़ा
मुँह मोड़ के दरिया पे जो पीता रहा जाम-ए-वफ़ा
होते रहे बाज़ू क़लम
ऊँचा रहे अपना अलम.....
वो तीरे बानी-ए-जफ़ा
मासूम का नन्हा गला
इस्लाम ज़िंदा कर गई असग़र के मरने की अदा
हँस कर सहा तीरे सितम
ऊँचा रहे अपना अलम.....
ज़िंदा है हलमिन की सदा
मिटा नहीं ख़ूँ का लिखा
शब्बीर के हक़ की कसम ये मोजज़ा है करबला
ये सिलसिला होगा ना कम
ऊँचा रहे अपना अलम.....
अय नौजवानान-ए-अज़ा
तुम हो किसी दिल की दुआ
ताहशर उठती ही रहे सीनों से मातम की सदा
क़ायम रहे अकबर का ग़म
ऊँचा रहे अपना अलम.....
जब करबला याद आएगी
इंसानियत शर्माएगी
मज़लूम की आवाज़ है दिल में उतरती जाएगी
पलटेंगे फिर बहके क़दम
ऊँचा रहे अपना अलम.....
ज़िंदा ये बेदारी रहे
ये सिलसिला जारी रहे
हम हो ना हो इस बज़्म में क़ायम अज़ादारी रहे
निकले इसी चौख़ट पे दम
ऊँचा रहे अपना अलम.....
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Ooncha rahe apna Alam.....
Jab tak hai daur-e-aasmaan
Sunle ye har peer-o-jawan
Aawaaz par Shabbir ki barhta rahe yeh kaarwan
Rukne na paaye yeh qadam
Ooncha rahe apna Alam.....
Har qalb par chaate chalo
Duniya ko batlaate chalo
Ek ek mauhaaz-e-zulm ki tasveer dikhlate chalo
Har dil me bhar do Sheh ka gham
Ooncha rahe apna Alam.....
Kab tak na maanega koi
Wo waqt aayega kabhi
Har qalb par cha jayega apna Hussain-ibne-Ali
Is dar pe har sar hoga kham
Ooncha rahe apna Alam.....
Jab bhi koi mushkil padi
Duniya isi dar pe jhuki
Seeno se bal khaker idhar nikla Naad-e-Ali
Udhar nikla baatil ka dum
Ooncha rahe apna Alam.....
Yeh Parcham-e-Abbas hai
Toote dilon ki aas hai
Ab tak isi parcham tale zinda kisi ki pyaas hai
Jisne sahe lakhon sitam
Ooncha Rahe Apna Alam....
Abbas hai naam-e-wafa
Aaghaz-o-anjaam-e-wafa
Munh mod ke dariya pe jo peeta raha jaam-e-wafa
Hote rahe baazoo qalam
Ooncha rahe apna Alam.....
Wo teere baani-e-jafa
Masoom ka nanha gala
Islam zinda kar gayi Asghar ke marne ki ada
Hans kar saha teere sitam
Ooncha rahe apna Alam.....
Zinda hai Halmin ki sada
Mitta nahin khoon ka likha
Shabbir ke haq ki qasam yeh maujeza hai Karbala
Yeh silsila hoga na kam
Ooncha rahe apna Alam.....
Ay naujawanan-e-Aza
Tum ho kisi dil ki dua
Tahashr uthti hi rahe Seenon say maatam ki sada
Qayam rahe Akbar ka gham
Ooncha rahe apna Alam.....
Jab Karbala yaad aayegi
Insaaniyat sharmayegi
Mazloom ki aawaaz hai dil me utarti jayegi
Paltenge phir bahke qadam
Ooncha rahe apna Alam.....
Zinda yeh bedaari rahe
Yeh silsila jaari rahe
Ham ho na ho is bazm me qayam azadaari rahe
Nikle isi chaukhat pe dam
Ooncha rahe apna Alam.....
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