Azadari Ka Mausam Hai


फ़ज़ाओं में लहू की फिर वही मानूस ख़ुशबू है
बपा है धड़कनों में तशनगाने करबला की प्यास का मातम
न जाने फिर किसे ये रुत मयस्सर हो
सो अश्कों के अरिज़ों से अलम की छाँव में आकर
वफ़ा के अहद की तजदीद कर लीजे
के ये मौसम वफ़ादारी का मौसम है
अज़ादारी का मौसम है
अज़ादारी का मौसम है

सरे फर्शे अज़ा आओ अज़ादारी का मौसम है
लहू आँखों से बरसाओ अज़ादारी का मौसम है

उठो इश्क़े अली वालों तुम्हें मंज़िल बुलाती है
सुनो कर्बला वालों सदा हलमिन की आती है
सरे मक़्तल चले आओ अज़ादारी का मौसम है
सरे फर्शे आज़ा आओ....

हथेली पर धरा है सर बदन तय्यार रखा है
यहाँ हर फ़र्द-ए-मिल्लत ने कफ़न तय्यार रखा है
अदू को जाके बतलाओ अज़ादारी का मौसम है
सरे फर्शे आज़ा आओ....

बयाँ दे ज़ख़्मी मश्क़ीज़ा अभी रोता है ये पानी
अभी मौजों के सीने में छुपी है एक तुग़्यानी
अये दुनिया भर के दरियाओं अज़ादारी का मौसम है
सरे फर्शे आज़ा आओ....

कठिन हालात है ऐसे के अब जीना मुसीबत है
घुटन ऐसी है अये हमदम के दम लेना ग़नीमत है
अलम ग़ाज़ी का लहराओ अज़ादारी का मौसम है
सरे फर्शे आज़ा आओ....

बिनाये आले अहमद पर ख़ुदा तुमको जज़ाये दे
निखारो ऐसे औलादे के ज़ैनब भी दुआएं दे
हुसैनी क़ौम की माओं अज़ादारी का मौसम है
सरे फर्शे आज़ा आओ....

कहा शब्बीर ने माँ की तरह दरबार जाओगी
ना दोगी बद्दुआ तुम जब सरे बाज़ार जाओगी
क़सम ज़ैनब मेरी खाओ अज़ादारी का मौसम है
सरे फर्शे आज़ा आओ....

उठा के नन्हे हाथों को दुआयें देके जाती हैं 
सकीना करबला वालों का पुरसा लेने आती हैं 
आज़ाख़ानों को महकाओ अज़ादारी का मौसम है
सरे फर्शे आज़ा आओ....

यही शामें ग़रीबां हैं जले ख़ैमें हैं ग़ुर्बत है
गरेबाँ चाक कर डालो के ज़ैनब पर मुसीबत है
हवाओं बाल बिखराओ अज़ादारी का मौसम है
सरे फर्शे आज़ा आओ....

कभी "रिज़वान" हम होते हैं जो हालात से मुज़्तर
हवा-ए-परचमे अब्बास कहती हैं सुनो "मज़हर'
मेरे साए में आ जाओ अज़ादारी का मौसम है
सरे फर्शे आज़ा आओ....

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Har ek jaanib udasi hai, azaa ki rooh pyasi hai
Fazaon may lahoo ki phir wohi manoos khushboo hai
Bapa hai dhadkano may tashnagane Karbala ki pyas ka matam
Najane phir kisay ye ruth mayassar ho
So ashkon ke areezo se alam ki chaon may aakar
Wafa ke ahed ki tajdeed kar lijay
Ke ye mausam wafadari ka mausam hai
Azadari ka mausam hai
Azadari ka mausam hai

Sare farshe azaa aao azadari ka mausam hai
Lahoo aankhon se barsao azadari ka mausam hai

Utho ishqe ali walon tumhay manzil bulaati hai
Suno karbobala walon sada hal min ki aati hai
Sare maqtal chale aao azadari ka mausam hai
Sare farshe azaa aao....

Hatheli par dhara hai sar badan tayyar rakha hai
Yahan har fard-e-millat ne kafan tayyar rakha hai
Adoo ko jaake batlao azadari ka mausam hai
Sare farshe azaa aao....

Bayan de zakhmi mashkeeza abhi rota hai ye pani
Abhi maujon ke seene may chupi hai ek tughyani
Ay dunya bhar ke daryaon azadari ka mausam hai
Sare farshe azaa aao....

Kathin halaat hai aise ke ab jeena musibat hai
Ghutan aisi hai aye humdam ke dum lena ghanimat hai
Alam Ghazi ka lehrao azadari ka mausam hai
Sare farshe azaa aao....

Binaye Aale Ahmed par Khuda tumko jazaaye de
Nikharo aise aulaade ke Zehra bhi duayein de
Hussaini qaum ki maaon azadari ka mausam hai
Sare farshe azaa aao....

Kaha Shabbir ne maa ki tarha darbaar jaogi
Na dogi baddua tum jab sare bazaar jaogi
Qasam Zainab meri khao azadari ka mausam hai
Sare farshe azaa aao....

Uthake nanhe haathon ko duayein deke jaati hai
Sakina Karbala walon ka pursa lene aati hai
Azakhano ko mehkao azadari ka mausam hai
Sare farshe azaa aao....

Yehi shame ghariban hai jalay khaime hai ghurbat hai
Gareban chaak kar dalo ke zainab par musibat hai
Hawaon baal bikhrao azadari ka mausam hai
Sare farshe azaa aao....

Kabhi "Rizwan" hum hotay hai jo halaat se muztar
Hawaye parchame abbas kehti hai suno "Mazhar"
Mere saaye may aajao azadari ka mausam hai
Sare farshe azaa aao....

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