Musafirane musibat watan may aate hai


ना महमिल है ना हौदज है
ना लश्कर की वो सजधज है
ना सर पे अलम ना चादर है
अल्लाह ये कैसा मंज़र है
मुसाफ़िराने मुसीबत वतन में आते हैं

सफ़र से आते है सौग़ाते दर्द लाते हैं 
मुसाफ़िराने मुसीबत.....

किया सलाम मोहम्मद के आस्ताने को
लुटा के आए हैं ज़हरा के सब घराने को
ना कर क़ुबूल तू हम बेकसों के आने को
ये नौहा करते हैं और अश्क़े खूँ बहाते हैं
मुसाफ़िराने मुसीबत.....

मदीना हम तेरे वाली को आए हैं खो कर
मदीना कूफ़े में सर नंगे हम फिरे दर दर
मदीना दाग़े रसन है हमारे शानों पर
उठा के हाथ मदीने को ये सुनाते हैं
मुसाफ़िराने मुसीबत.....

हर एक क़दम है बुका कब लबों पे बैन नहीं
हम आए ज़िंदा पर ज़हरा का नूरे ऐन नहीं
मदीना अकबर-ओ-क़ासिम नहीं हुसैन नहीं
ये कैसे कैसे जवान थे जो याद आते हैं
मुसाफ़िराने मुसीबत.....

मदीने वालों कहो उस बहन की क्या तक़दीर
जो देखे अपने बिरादार के हल्क़ पर शमशीर
लहू में ग़र्क़ जो देखे हुसैन की तस्वीर
लहू में क्या यूँही भाई का सर दिखाते हैं
मुसाफ़िराने मुसीबत.....

बताओ कहते हैं क्या सब उस अम्मा जाई को
जो अरबईन तलक दे कफ़न ना भाई को
बहन दिखाएगी मुँह किस तरहा ख़ुदाई को
कफ़न दिया है ना उनकी लहद बनाते हैं
मुसाफ़िराने मुसीबत.....

चला बशीर ये देता हुआ ख़बर हर जा
मगर महल्ला-ए-हाशिम में देखता है क्या
के एक मरीज़ा सरे राह है खड़ी तन्हा
है मुंतज़िर के वो कुनबे के लोग आते हैं
मुसाफ़िराने मुसीबत.....

ख़बर ये फैली तो मातम हर एक घर मे हुआ
निकल निकल पड़ी सब औरतें बरहना पा
गिरी ज़मीन पे सुग़रा के उस पे चर्ख़ गिरा
जो सोगवार हैं सुग़रा के पास आते हैं
मुसाफ़िराने मुसीबत.....

फ़िज़ा-ए-दर्द में लेकर उदासियाँ आईं
सफ़र से लुट के इधर भूखी प्यासियाँ आईं
उठो रसूल तुम्हारी नवासियाँ आईं
के ख़ुद को ऊँटों से अहले हरम गिराते हैं
मुसाफ़िराने मुसीबत.....

जो आई कान में आवाज़े बानो-ए-मुज़तर
कहाँ हो अये मेरे वाली इमामे जिन्नो बशर
तड़प के रह गईं सुग़रा बपा हुआ महशर
"दबीर" बस के अब अफ़लाक थरथरातें हैं
मुसाफ़िराने मुसीबत.....

हौदा जो ऊंट या हाथी की पीठ पर बैठने के लिये रखा जाता है

अफ़लाक - आकाश-समूह, सब आसमान
हौदज -लकड़ी का बना हौदा ऊंट की पीठ पर बैठने के लिये
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Na mehmil hai na haudaj hai
Na lashkar ki wo sajdhaj hai
Na sar pe alam na chadar hai
Allah ye kaisa manzar hai
Musafirane musibat watan may aate hai

Safar se aate hai saughate dard laate hai
Musafirane musibat....

Kiya salaam Mohammad ke aastane ko
Luta ke aaye hai Zehra ke sab gharane ko
Na kar qubool tu hum bekaso ke aane ko
Ye nauha karte hai aur ashke khoon bahate hai
Musafirane musibat....

Madina hum tere waali ko aaye hai kho kar
Madina Kufe may sar nange hum phire dar dar
Madina daaghe rasan hai hamare shano par
Utha ke haath Madine ko ye sunate hai
Musafirane musibat....

Har ek qadam hai buka kab labon pe bayn nahi
Hum aaye zinda par Zehra ka noor-e-ain nahi
Madina Akbar o Qasim nahi Hussain nahi
Ye kaise kaise jawan thay jo yaad aate hai
Musafirane musibat....

Madine walon kaho us behan ki kya taqdeer
Jo dekhe apne biradar ke halq par shamsheer
Lahoo may ghark jo dekhe Hussain ki tasveer
Lahoo may kya yunhi bhai ka sar dikhate hai
Musafirane musibat....

Batao kahte hai kya sab us amma jayi ko
Jo arbaeen talak de kafan na bhai ko
Behan dikhayegi moo kis tarha khudayi ko
Kafan diya hai na unki lahad banate hai
Musafirane musibat....

Chala basheer ye deta huwa khabar har ja
Magar mehellaye hashim may dekhta hai kya
Ke ek mareeza sare raah hai khadi tanha
Hai muntazir ke wo kunbe ke log aate hai
Musafirane musibat....

Khabar ye phaili to matam har ek ghar may huwa
Nikal nikal padi sab aurate barehna pa
Giri zameen pe Sughra ke uspe charkh gira
Jo soghwar hai Sughra ke paas aate hai
Musafirane musibat....

Fizay e dard may lekar udasiya aayi
Safar se lut ke idhar bhooki pyasian aayi
Utho Rasool tumhari nawasiya aayi
Ke khud ko oonto se ahle haram girate hai
Musafirane musibat....

Jo aayi kaan may aawaaze Bano-e-Muztar
Kahan ho aye mere waali Imame jinn-o-bashar
Tadap ke rah gayi Sughra bapa huwa mehshar
"Dabeer" bas ke ab aflaaq thartharate hai
Musafirane musibat....

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