लब्बैक या हुसैना
लब्बैक या हुसैना
दरे क़ुबूले दुआ की तरफ़ चले ज़ायर
चराग़े बाम-ए-वफ़ा की तरफ़ चले ज़ायर
अमीरे सब्र-ओ-रज़ा की तरफ़ चले ज़ायर
शहीदे राहे ख़ुदा की तरफ़ चले ज़ायर
नजफ़ से करबोबला की तरफ़ चले ज़ायर.....
अजीब मजमा-ए-अहले अज़ा का आलम है
यहाँ तो वास्ते सफ़र बस हुसैन का ग़म है
अदब से सर को झुकाए हैं आँख पुरनम है
की सय्यदुश शोहदा की तरफ़ चले ज़ायर
नजफ़ से करबोबला की तरफ़ चले ज़ायर.....
गदा-ए-लुत्फ़-ओ-करम है ये रुक नहीं सकते
ये पासबाने हरम हैं ये रुक नहीं सकते
ये आशिक़ों के क़दम हैं ये रुक नहीं सकते
हुसैनियत की सदा की तरफ़ चले ज़ायर
नजफ़ से करबोबला की तरफ़ चले ज़ायर.....
रुसूल से है वफ़ा का हलफ़ हुसैन का ग़म
बहिश्त जिसका गोहर हो सदफ़ हुसैन का ग़म
ये अरबईन का दिन हर तरफ़ हुसैन का ग़म
वो देख अपनी बक़ा की तरफ़ चले ज़ायर
नजफ़ से करबोबला की तरफ़ चले ज़ायर.....
अबू तूराब को करके सलाम निकलें हैं
बराये रौज़ा-ए-आली मक़ाम निकलें हैं
शहे वफ़ा के लिए ये ग़ुलाम निकलें हैं
दयारे जूद-ओ-सख़ा की तरफ़ चले ज़ायर
नजफ़ से करबोबला की तरफ़ चले ज़ायर.....
हर एक दिल में अक़ीदत हुसैन से है शदीद
हर एक गाम पे बढ़ता है जोशे इश्क़ मज़ीद
फिर आज ख़ौफ़ से लरज़ा है अहदे नौ का यज़ीद
यज़ीदीयत की फ़ना की तरफ़ चले ज़ायर
नजफ़ से करबोबला की तरफ़ चले ज़ायर.....
इन्हे अज़ा-ए-हुसैनी से बढ़ के काम नहीं
सिवाए रौज़ा-ए-अतहर कहीं क़याम नहीं
किसी जबी पे कहीं भी थकन का नाम नहीं
जिनाँ की आबो हवा की तरफ़ चले ज़ायर
नजफ़ से करबोबला की तरफ़ चले ज़ायर.....
अली के घर ने ही इस्लाम को बचाया है
यही ख़्याल तो ज़हनों पे आज छाया है
रिदा-ए-फ़ातेमा ज़हरा का सर पे साया है
फिर आज बाबे अता की तरफ़ चले ज़ायर
नजफ़ से करबोबला की तरफ़ चले ज़ायर.....
ख़ुदा की रहमतों का सायबान है इन पर
ये हर क़दम जो हिसारे अमान है इन पर
निगाहे मेहदी-ए-आख़िर ज़मान है इन पर
मक़ामे तख़्ते रसा की तरफ़ चले ज़ायर
नजफ़ से करबोबला की तरफ़ चले ज़ायर.....
इसी ज़मीं पे बहा आले मुस्तफ़ा का लहू
इसी ज़मीं पे हुआ क़त्ल क़ासिम-ए-ख़ुश-रू
इसी ज़मीन पे अब्बास के कटे बाज़ू
फ़ुरात-ए-रंजज़दा की तरफ़ चले ज़ायर
नजफ़ से करबोबला की तरफ़ चले ज़ायर.....
यहीं शबीहे पयम्बर को मौत आई है
'अदू के हाथों से बरछी यहीं पे खाई है
यहीं हुसैन ने बेटे की लाश उठाई है
शहीदे सुर्ख़ क़बा की तरफ़ चले ज़ायर
नजफ़ से करबोबला की तरफ़ चले ज़ायर.....
इसी ज़मीं पे था क़त्ले शाह से कोहराम
यहीं जलाए गये आले मुस्तफ़ा के ख़्याम
सरों से चादरे छीनी गयी यहीं सरे शाम
सवाद-ए-शहर-ए-अज़ा की तरफ़ चले ज़ायर
नजफ़ से करबोबला की तरफ़ चले ज़ायर.....
लब्बैक या हुसैना
लब्बैक या हुसैना
बाम-ए-वफ़ा - वफ़ा की सबसे ऊपरी मंज़िल
गदा - भिखारी , भिक्षुक
लुत्फ़-ओ-करम - मेहरबानी और इनायत
जूद-ओ-सख़ा - दरियादिली, उदारता, दानशीलता
जिनाँ - स्वर्ग, जन्नते
सायबान - साया करने वाला , छाया देने वाला
हिसारे अमान - पनाह के घेरे में
ख़ुश-रू - रूपवान , अच्छी शक्ल वाला
'अदू - दुश्मन
सवाद-ए-शहर - शहर के क़रीब का इलाक़ा
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Labbaik Ya Hussaina
Labbaik Ya Hussaina
Dare quboole dua ki taraf chale zayar
Charaghe baame wafa ki taraf chale zayar
Ameere sabro raza ki taraf chale zayar
Shaheede rahe Khuda ki taraf chale zayar
Najaf se Karbobala ki taraf chale zayar.....
Ajeeb majma-e-ahle-aza ka aalam hai
Yaha to waaste safar bas Hussain ka gham hai
Adab se sar ko jhukaye hain aankh purnam hai
Ki Sayyad-ush-Shohda ki taraf chale zayar
Najaf se Karbobala ki taraf chale zayar.....
Gada-e-lutfo-karam hai ye ruk nahi sakte
Ye paasbane haram hain ye ruk nahi sakte
Ye ashiqo ke qadam hain ye ruk nahi sakte
Hussainiat ki sada ki taraf chale zayar
Najaf se Karbobala ki taraf chale zayar.....
Rusool se hai wafa ka halaf Hussain ka gham
Bahisht jiska gohar ho sadaf Hussain ka gham
Ye Arbaeen ka din har taraf Hussain ka gham
Wo dekh apni baqa ki taraf chale zayar
Najaf se Karbobala ki taraf chale zayar.....
Abu Turab ko karke salaam nikle hain
Baraye Rauza-e-Aali maqam nikle hain
Shahe wafa ke liye ye ghulam nikle hain
Dyaare juud-o-sakhaa ki taraf chale zayar
Najaf se Karbobala ki taraf chale zayar.....
Har ek dil me aqeedat Hussain se hai shadeed
Hae ek gaam pe badhta hai joshe ishq mazeed
Phir aaj khauf se larza hai ahde nau ka yazeed
yazeediyat ki fana ki taraf chale zayar
Najaf se Karbobala ki taraf chale zayar.....
Inhe Aza-e-Hussaini se badh ke kaam nahi
Siwaye Rauza-e-Athar kahi qayam nahi
Kisi jabi pe kahi bhi thakan ka naam nahi
Jina ki aab-o-hawa ki taraf chale zayar
Najaf se Karbobala ki taraf chale zayar.....
Ali ke ghar ne hi Islam ko bachaya hai
Yehi khyaal to zehno pe aaj chaaya hai
Rida-e-Fatema Zehra ka sar pe saya hai
Phir aaj Baab-e-Ata ki taraf chale zayar
Najaf se Karbobala ki taraf chale zayar.....
Khuda ki rahmato ka sayeban hai in par
Ye har karam jo hisare amaan hai in par
Nigahe Mehdi-e-Akhir Zaman hai in par
Maqame takhte rasa ki taraf chale zayar
Najaf se Karbobala ki taraf chale zayar.....
Isi zameen pe baha Aal-e-Mustafa ka lahoo
Isi zameen pe hua qatl Qasim-e-khushroo
Isi zameen pe Abbas ke kate baazu
Furat-e-ranjzada ki taraf chale zayar
Najaf se Karbobala ki taraf chale zayar.....
Yahin Shabihe Payamaber ko maut aayi hai
Adoo ke hatho se barchi yahi pe khayi hai
Yahi Hussain ne bete ki laash uthai hai
Shaheed-e-Surkh qaba ki taraf chale zayar
Najaf se Karbobala ki taraf chale zayar.....
Isi zameen pe tha qatle Shah se kohram
Yahi jalaye gaye Aal-e-Mustafa ke khyaam
Saro se chadare cheeni gayi yahin sare shaam
Swae shahre aza ki taraf chale zayar
Najaf se Karbobala ki taraf chale zayar.....
Labbaik Ya Hussaina
Labbaik Ya Hussaina
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