दरे ज़िंदां पे सकीना यही करती थी बुका
शाम होने को है अब लौट के आओ बाबा
तंग है शाम का ज़िंदान अंधेरा है बहोत
हैं नहीं आप तो अब खाक़ बिछौना है सदा
दरे ज़िंदां पे.....
तकती रहती हूँ परिंदों को बसद हसरतो यास
क्या वतन जाऊँगी इस क़ैद से छुटकर मैं भला
दरे ज़िंदां पे.....
देख कर हालते सज्जाद वो रो के कहतीं
हाय बीमार मेरे भाई पे है कैसी जफ़ा
दरे ज़िंदां पे.....
याद आ जाते जो असग़र कभी अकबर उसको
भाई आ जाओ यहाँ रो रो वो देती थी सदा
दरे ज़िंदां पे.....
माँ की आग़ोश में किस तरहा उसे नींद आए
बाप के सीने पे सोती रही बच्ची जो सदा
किस तरहा दिल को मैं बहलाऊँ घुटा जाता है दम
हैं ना नन्हें मेरे साथी, हैं ना अम्मू बाबा
दरे ज़िंदां पे.....
उसका दामन भी जला कानों से दुर छीन लिए
पुश्त पर नील थे और कानों में भी खूॅं था जमा
दरे ज़िंदां पे.....
रोते रोते युहीं एक शब जो ज़रा आँख लगी
चौंक कर उठी सकीना यही मादर से कहा
दरे ज़िंदां पे.....
शोर ये सुनके उठा नींद से बदबख़्त यज़ीद
बोला ज़िंदान में ले जाओ सरे शाहे हुदा
सब ने बढ़ बढ़ के सलामी शहे मज़लूम को दी
गोद में लेके सरे शाह सकीना ने कहा
दरे ज़िंदां पे.....
आप के बाद मुझे शिम्र ने मारे दुर्रे
बाद बाबा तेरे क्या क्या ना सितम हमने सहा
दरे ज़िंदां पे.....
वो मुझे लेने को आए हैं मैं सदक़े उनके
बाबा के साथ मैं जाऊँगी हुई पूरी दुआ
दरे ज़िंदां पे.....
बोलते बोलते ख़ामोश हुई जब बीबी
रोके बानो ने कहा देखो तो सज्जाद ज़रा
दरे ज़िंदां पे.....
क्या हुआ बात नहीं करती है मज़लूम मेरी
पास आबिद जो गये देखा की सदमा है नया
दरे ज़िंदां पे.....
हथकड़ी पहने हुए खोदी लहद आबिद ने
ख़ूॅं भरा कुर्ता कफ़न बन गया शहज़ादी का
दरे ज़िंदां पे.....
नौहा "ऐजाज़-ओ-हसन" का ये पढ़ा "अहसन" ने
आप बुलवाइए रौज़े पर करें इज़्न अता
दरे ज़िंदां पे सकीना यही करती थी बुका
शाम होने को है अब लौट के आओ बाबा
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Dare zindan pe Sakina yehi karti thi buka
Shaam hone ko hai ab laut ke aao baba
Tang hai shaam ka zindan andhera hai bahot
Hai nahi aap to ab khaaq bichona hai sada
Dare zindan pe.....
Takti rehti hoon parindo ko basad hasrat o yas
Kya watan jaungi is qaid se chuthkar mai bhala
Dare zindan pe.....
Dekh kar haalate Sajjad wo roke kehti
Haye bemaar mere bhai pe hai kaisi jafa
Dare zindan pe.....
Yaad aajate jo Asghar kabhi Akbar usko
Bhai aajao yahan ro ro wo deti thi sada
Dare zindan pe.....
Maa ki aagosh may kis tarha usay neend aaye
Baap ke seene pe soti rahi bachchi jo sada
Kis tarha dil ko mai behlaun ghuta jaata hai dam
Hai na nanhe mere saathi hai na ammu baba
Dare zindan pe.....
Iska daman bhi jala kaano se durr cheen liye
Pusht par neele thay aur kaano may bhi khoon tha rawan
Dare zindan pe.....
Rote rote yuhin ek shab jo zara aankh lagi
Chaunk kar uthi Sakina yehi madar se kaha
Dare zindan pe.....
Shor ye sunke utha neendh se badbakht yazeed
Bola zindan may lejao sare Shahe Huda
Sab ne badh badh ke salaami Shahe Mazloom ko di
God may leke sare Shah Sakina ne kaha
Dare zindan pe.....
Aap ke baad mujhe shimr ne maare durray
Baad baba tere kya kya na sitam humne saha
Dare zindan pe.....
Wo mujhe lene ko aaye hai mai sadqe unke
Baba ke saath mai jaaungi hui poori dua
Dare zindan pe.....
Bolte bolte khamosh hui jab bibi
Roke Bano ne kaha dekho to Sajjad zara
Dare zindan pe.....
Kya hua baat nahi karti hai mazloom meri
Paas Abid jo gaye dekha ki sadma hai naya
Dare zindan pe.....
Hathkadi pahne hue khodi lahed Abid ne
Khoon bhara kurta kafan ban gaya Shahzadi ka
Dare zindan pe.....
Nauha "Aijaz-o-Hasan" ka ye padha "Ahasan" ne
Aap bulwayiye rauze par karen izn ataa
Dare zindan pe Sakina yehi karti thi buka
Shaam hone ko hai ab laut ke aao baba
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