वो जिसको मार्फ़ते नफ़्से मुस्तफ़ा ही नहीं
वो दीने हक़ की हक़ीक़त को जानता ही नहीं
वो जिसने अज्रे रिसालत अदा किया ही नहीं
हज़ार सजदे करे कोई फ़ायदा ही नहीं
अमल वो जिसपे मवद्दत की मोहर सख़्त ना हो
क़ुबूलियत से उसे कोई वास्ता ही नहीं
वो जिसको मार्फ़ते.....
अली का और तक़ाबुल अमीरे शाम के साथ
अली पे इससे ज़ियादा सितम हुआ ही नहीं
अलम वो हज़रत अब्बास का उठाये ही क्यूँ
की जिसमें हाथ कटाने का हौसला ही नहीं
यज़ीदियत को दिया शह ने वो जवाब के फिर
सवाले बय्यते फ़ासिक़ कभी उठा ही नहीं
वो जिसको मार्फ़ते.....
ग़मे हुसैन वो नेमत है ज़िंदगी के लिए
नहीं मिली जिसे समझो कुछ मिला ही नहीं
वो जिसको मार्फ़ते.....
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Wo jisko marfate nafse Mustafa hi nahi
Wo deene haq ki haqiqat ko janta hi nahi
Wo jisne ajre Risalat ada kiya hi nahi
Hazar sajde kare koi fayda hi nahi
Amal wo jispe mavaddat ki mohar sakht na ho
Qubooliyat se use koi wasta hi nahi
Wo jisko marafte.....
Ali ka aur taqaabul ameere shaam ke saath
Ali pe isse zyada sitam hua hi nahi
Alam wo Hazrate Abbas ka uthaye hi kyun
Ki jisme hath katane ka hausla hi nahi
yazeediyat ko diya Shah ne woh jawab ke phir
Sawaale bayyate faasiq kabhi utha hi nahi
Wo jisko marafte.....
Ghame Hussain wo nemat hai zindagi ke liye
Nahi mili jise samjho kuch mila hi nahi
Wo jisko marafte.....
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