तीरों के मुसल्ले पर वो सजदा-ए -शुक्राना
शब्बीर ने बतलाया इस्लाम पे मर जाना
कुछ इस तरहा लाश आई एक रात के ब्याहे की
अफ़सोस के मादर ने बेटे को ना पहचाना
तीरो के मुसल्ले....
सोचो तो मुसलमानों ये बात ही क्या कम है
अहमद की नवासी का दरबार में आ जाना
तीरो के मुसल्ले....
ये माँ की वसीयत थी अब्बासे दिलावर को
जब दीं पे बन आए तुम दीं पे मार जाना
तीरो के मुसल्ले....
दुनिया तो ना भूलेगी अब्बास वफ़ा तेरी
तलवार नही खैंची आक़ा का कहा माना
तीरो के मुसल्ले....
बरछी अली अकबर के सीने से निकल आई
देखा ना गया शाह से यूँ दिल का निकल आना
तीरो के मुसल्ले....
सरकी थी ज़रा चादर सूरज भी ना निकला था
ये सानिए ज़हरा है उम्मत ने ना पहचाना
तीरो के मुसल्ले....
भूलेगा ज़माने को मंज़र ना कभी "नासिर"
मासूम की मय्यत को शब्बीर का दफ़नाना
तीरों के मुसल्ले पर वो सजदा-ए -शुक्राना
शब्बीर ने बतलाया इस्लाम पे मर जाना
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Teero ke musalle par wo sajdaye shukrana
Shabbir ne batlaya Islam pe mar jana
Kuch is tarha laash aayi ek raat ke byahe ki
Afsos ke madar ne bete ko na pehchana
Teero ke musalle....
Socho to musalmano ye baat hi kya kam hai
Ahmed ki nawasi ka darbar may aa jaana
Teero ke musalle....
Ye maa ki wasiyat thi Abbas-e-dilawar ko
Jab deen pe ban aaye tum deen pe mar jaana
Teero ke musalle....
Dunya to na bhoolegi Abbas wafa teri
Talwar nahi khenchi Aaqa ka kaha maana
Teero ke musalle....
Barchi Ali Akbar ke seene se nikal aayi
Dekha na gaya Shah se yun dil ka nikal aana
Teero ke musalle....
Sarki thi zara chadar suraj bhi na nikla tha
Ye Saniye Zehra hai ummat ne na pehchana
Teero ke musalle....
Bhoolega zamane ko manzar na kabhi "Nasir"
Masoom ki mayyat ko Shabbir ka dafnana
Teero ke musalle....
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