क्या ज़ुल्म थे फ़रज़ंदे हुसैन इब्ने अली पर
ज़ंजीर भी रोने लगी आबिद से लिपट कर
क्या ज़ुल्म थे फ़रज़ंदे हुसैन.....
सर कटते ही बाबा का क़यामत हुई बरपा
थी आग लगी ख़ैमों में एक हश्र बपा था
ग़श में थे पड़े आबिदे बीमार ज़मीं पर
क्या ज़ुल्म थे फ़रज़ंदे हुसैन इब्ने अली पर
क्या ज़ुल्म थे फ़रज़ंदे हुसैन.....
क्या क्या ना सहे रंजो सितम आबिदे दिलगीर
ज़ख़्मों से लहू बहता था जब हिलती थी ज़ंजीर
कोई ना तरस खाता था हंसते थे सितमगर
क्या ज़ुल्म थे फ़रज़ंदे हुसैन इब्ने अली पर
क्या ज़ुल्म थे फ़रज़ंदे हुसैन.....
झूला अली असग़र का झुलसते हुए देखा
चादर सरे ज़ैनब से उतरते हुए देखा
उस ज़ुल्म पर भी सब्र किया अल्लाह-ओ-अकबर
क्या ज़ुल्म थे फ़रज़ंदे हुसैन इब्ने अली पर
क्या ज़ुल्म थे फ़रज़ंदे हुसैन.....
बस शाम का नाम आते ही हो जाते थे मुज़तर
माँ बहने फूफी साथ थी बेमख़ना-ओ-चादर
कहते थे ना भूलूंगा कभी शाम का मंज़र
क्या ज़ुल्म थे फ़रज़ंदे हुसैन इब्ने अली पर
अये "मूसवी" दुनिया से उठा आज वो ग़मख़ार
चालीस बरस रोया था शह का जो अज़ादार
मातम उसी मज़लूम का है आज हर एक घर
क्या ज़ुल्म थे फ़रज़ंदे हुसैन इब्ने अली पर
क्या ज़ुल्म थे फ़रज़ंदे हुसैन.....
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Kya zulm the farzande Hussain ibne Ali par
Zanjeer bhi rone lagi Abid se lipat kar
Kya zulm the farzande Hussain.....
Sar katte hi baba ka qayamat hui barpa
Thi aag lagi khaimo me ek hashr bapa tha
Ghash me the pade Abid-e-beemar zamee par
Kya zulm the farzande Hussain ibn e Ali par
Kya zulm the farzande Hussain.....
Kya kya na sahe ranj-o-sitam Abid-e-dilgeer
Zakhmo se lahoo bahta tha jab hilti thi zanjeer
Koi na taras khata tha hanste the sitamgar
Kya zulm the farzande Hussain ibne Ali par
Kya zulm the farzande Hussain.....
Jhoola Ali Asghar ka jhulaste hue dekha
Chaadar sare Zainab se utarte hue dekha
Us zulm par bhi sabr kiya Allah-o-Akbar
Kya zulm the farzande Hussain ibne Ali par
Kya zulm the farzande Hussain.....
Bas shaam ka naam aate hi ho jaate the muztar
Maa bahne phoophi sath thi bemkhna-o-chadar
Kahte the na bhoolunga kabhi shaam ka manzar
Kya zulm the farzande Hussain ibne Ali par
Aye "Mooswi" duniya se utha aaj wo ghamkhar
Chalees baras roya tha Shah ka jo azadar
Matam usi mazloom ka hai aaj har ek ghar
Kya zulm the farzande Hussain ibne Ali par
Kya zulm the farzande Hussain.....
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