Ghame Hussain manana bahot zaroori hai


ग़मे हुसैन मनाना बहोत ज़रूरी है
हुसैनी शमा जलाना बहोत ज़रूरी है

रहे निजात में खुर्शीद ज़िंदगी के लिए
बक़ा के वास्ते ख़ालिक़ की बंदगी के लिए
जिहालतों के अंधेरों में रौशनी के लिए
हुसैनी शमा जलाना बहोत ज़रूरी है
ग़मे हुसैन.....

वो जिसमें असग़रे मासूम का तबस्सुम है
वो जिसमें अश्कों का सैलाब है तलातुम है
वो जिसमें आख़िरी शब्बीर की सदा गुम है
वो दास्तान सुनाना बहोत ज़रूरी है
ग़मे हुसैन.....

वो जिसने दीन बचाया है करबला आकर
वो जिसने आख़िरी सजदा किया तहे ख़ंजर
वो जिसके दर पे फरिश्ते झुका रहे हैं सर
सर उसके दर पे झुकाना बहोत ज़रूरी है
ग़मे हुसैन.....

ये वो हुसैन है जो फ़ख़्रे इब्ने आदम है
के जिसके ज़ेरे क़दम रिफ़'अते दो-आलम है
उसी हुसैन के ग़म में ये शोरे मातम है
ये बात सब को बताना बहोत ज़रूरी है
ग़मे हुसैन.....

वो भूख-ओ-प्यास वो बरछी वो सीना-ए-अकबर
वो मश्क और वो बाज़ू कटे जो दरया पर
वो शह का आख़िरी सजदा वो शिम्र का ख़ंजर
हर एक को याद दिलाना बहोत ज़रूरी है
ग़मे हुसैन..... 

ख़मोश आले मोहम्मद का आज डेरा है
बला का शामे ग़रीबां में एक अंधेरा है 
रसूलज़ादीयाँ और ख़ाक़ पर बसेरा है 
अज़ा का फ़र्श बिछाना बहोत ज़रूरी है
ग़मे हुसैन.....

हुसैन ही तो सहारा है आदमी के लिए 
हुसैन ही की ज़रुरत है ज़िन्दगी के लिए
"उरूज" अज़्मे हुसैनी को बरतरी के लिए
निशाने राह बनाना बहोत ज़रूरी है
ग़मे हुसैन.....

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Ghame Hussain manana bahot zaroori hai
Hussaini shama jalan bahot zaroori hai

Raahe nijaat may khursheede zindagi ke liye
Baqa ke waaste khaaliq ki bandagi ke liye
Jihalaton ke andheron may roshni ke liye
Hussaini shama jalan bahot zaroori hai
Ghame Hussain.....

Wo jisme Asghar-e-Masoom ka tabassum hai
Wo jisme ashkon ka sailaab hai talatum hai
Wo jisme aakhri Shabbir ki sada gum hai
Wo daastan sunana bahot zaroori hai
Ghame Hussain.....

Ye wo Hussain hai jo fakhre ibne adam hai
Ke jiske zere qadam rifate do aalam hai
Usi Hussain ke gham may ye shore matam hai
Ye baat sab ko batana bahot zaroori hai
Ghame Hussain.....

Wo jisne deen bachaya hai Karbala aakar
Wo jisne aakhri sajda kiya tahe khanjar
Wo jiske dar pe farishte jhuka rahe hai sar
Sar uske gher pe jhukana bahot zaroori hai
Ghame Hussain.....

Wo bhookh-o-pyas wo barchi wo Seena-e-Akbar
Wo mashk aur wo baazu kate jo darya par
Wo Shah ka aakhri sajda wo shimr ka khanjar
Har ek ko yaad dilaana bahot zaroori hai
Ghame Hussain.....

Khamosh Aal-e-Mohammad ka aaj dera hai
Bala ka shaame ghareeba me ek andhera hai
Rasoolzadiya aur khaq par basera hai
Aza ka farsh bichana bahot zaroori hai
Ghame Hussain.....

Hussain hi to sahara hai aadmi ke liye
Hussain hi ki zaroorat hai zindagi ke liye
"Urooj" azme Hussaini ko bartari ke liye
Nishane raah banana bahot zaroori hai
Ghame Hussain.....

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