Ek Diya Qabr-e-Sakina Pe Jalana Aaker


शाम वालों से ये आबिद ने कहा रो रो कर
एक दिया क़ब्रे सकीना पे जलाना आकर
होगा एहसान बहोत आपका भाई हम पर
एक दिया क़ब्रे सकीना पे जलाना आकर

ये वो है अर्श के पालों ने जिसे पाला है
नूरज़ादी है उजालों ने इसे पाला है
इसने देखे थे कहाँ शाम के ऐसे मंज़र
एक दिया क़ब्रे सकीना पे जलाना आकर

शाम वालों से ये आबिद ने कहा रो रो कर....

दिल की धड़कन इसे शब्बीर की सब कहते थे
साथ में अकबर ओ अब्बास सदा रहते थे
इसके चेहरे से हटती ना थी कभी मेरी नज़र
एक दिया क़ब्रे सकीना पे जलाना आकर

शाम वालों से ये आबिद ने कहा रो रो कर....

देखके घर में अंधेरों को ये घबराती थी
सुनके आहट ये हवाओं की भी डर जाती थी
आज तक ये ना रही थी कभी तन्हा घर पर
एक दिया क़ब्रे सकीना पे जलाना आकर

शाम वालों से ये आबिद ने कहा रो रो कर....

कौन सा प्यार था इसने जो ना पाया भाई
इसको हूरों ने भी गोदी में खिलाया भाई
प्यार से इसको सभी कहते थे जाने मादर
एक दिया क़ब्रे सकीना पे जलाना आकर

शाम वालों से ये आबिद ने कहा रो रो कर....

फूल की तरहा हमेशा ही रही हाथों में 
दस मोहर्रम से नहीं सोई थी ये रातों में 
सो भी जाती थी तो उठ जाती थी डर कर ख़्वाहर
एक दिया क़ब्रे सकीना पे जलाना आकर

शाम वालों से ये आबिद ने कहा रो रो कर....

ये कभी सोई नहीं बाप के सीने के सिवा 
दिन में हर वक़्त लिए रहते थे गोदी में चचा
पढ़ती थी साथ में फुफियों के नमाज़ें अक्सर
एक दिया क़ब्रे सकीना पे जलाना आकर

शाम वालों से ये आबिद ने कहा रो रो कर....

आऊँगा लौट के रौज़ें को बनाने के लिए
दिल नहीं चाहता हरगिज़ मेरा जाने के लिए
क्या करूँ हुक्मे मशियत से हूँ मजबूर मगर
एक दिया क़ब्रे सकीना पे जलाना आकर

शाम वालों से ये आबिद ने कहा रो रो कर....

सर खुले सारे असीरों के बराबर ही रही
बाप के सर को कभी देखती थी मुझको कभी
हाथ रख लेती थी अपने कभी रुख़सारों  पर
एक दिया क़ब्रे सकीना पे जलाना आकर

शाम वालों से ये आबिद ने कहा रो रो कर....

शाम वालों तुम्हें नाना की रिसालत की क़सम
कीजियो बेकसो मज़लूम पे बस इतना करम
अल-ग़रज़ सय्यदे सज्जाद चले ये कहकर
एक दिया क़ब्रे सकीना पे जलाना आकर

शाम वालों से ये आबिद ने कहा रो रो कर....

तुमने "खुर्शीद" की तरह जो पढ़ा है अश्आर
नौहा "गुलशन" ने लिखा सबने सुना रो रो कर
हिंद से शाम बुलाएगी तुम्हें जब ख़्वाहर
एक दिया क़ब्रे सकीना पे जलाना आकर

शाम वालों से ये आबिद ने कहा रो रो कर....
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Shaam walo se ye Abid ne kaha ro ro kar 
Ek diya qabr-e-Sakina pe jalana aaker 
Hoga ehsaan bohot aapka bhai humpar 
Ek diya qabr-e-Sakina pe jalana aaker

Ye wo hai arsh ke paalo ne jise paala hai 
Noor zaadi hai ujaalo ne ise paala hai 
Isne dekhe the kaha shaam ke aise manzar 
Ek diya qabr-e-Sakina pe jalana aakar

Shaam walo se ye Abid ne kaha ro ro kar...

Dil ki dhadkan ise shabbir ki sab kehte the 
Saath me Akbar o Abbas sada rehte the
Iske chehre se hatti na thi kabhi meri nazar 
Ek diya qabr-e-Sakina pe jalana aakar

Shaam walo se ye Abid ne kaha ro ro kar...

Dekhke ghar me andhero ko ye ghabrati thi 
Sunke aahat ye hawao ki bhi darr jati thi 
Aaj tak ye na rahi thi kabhi tanha ghar par 
Ek diya qabr-e-Sakina pe jalana aakar

Shaam walo se ye Abid ne kaha ro ro kar...

Kaunsa pyaar tha isne jo na paaya bhai 
Isko hooro ne bhi godi me khilaya bhai 
Pyaar se isko sabhi kehte the jaan e madar 
Ek diya qabr-e-Sakina pe jalana aakar

Shaam walo se ye Abid ne kaha ro ro kar...

Phool ki tarha hamesha hi rahi haatho me
Dus moharram se nahi soyi thi ye raato me 
So bhi jaati thi to uth jaati thi darr kar khwahar
Ek diya qabr-e-Sakina pe jalana aakar

Shaam walo se ye Abid ne kaha ro ro kar...

Ye kabhi soyi nahi baap ke seene ke siwa
Din me har waqt liye rehte the godi me chacha
Padhti thi saath me phupiyo ke namaz e aksar
Ek diya qabr-e-Sakina pe jalana aakar

Shaam walo se ye Abid ne kaha ro ro kar...

Aaoonga laut ke rauze ko banane ke liye
Dil nahi chahta hargiz mera jane ke liye
Kya karu hukme mashiyat se hu majbur magar
Ek diya qabr-e-Sakina pe jalana aakar

Shaam walo se ye Abid ne kaha ro ro kar...

Sar khule saare aseero ke barabar hi rahi
Baap ke sar ko kabhi dekhti thi mujhko kabhi
Haath rakh leti thi apne kabhi rukhsaro par
Ek diya qabr-e-Sakina pe jalana aakar

Shaam walo se ye Abid ne kaha ro ro kar...

Shaam walo tumhe nana ki risalat ki qasam 
Kijiyo bekaso mazloom pe bus itna karam 
Al gharaz Sayyed e Sajjad chale ye kehkar
Ek diya qabr-e-Sakina pe jalana aakar

Shaam walo se ye Abid ne kaha ro ro kar...

Tumne khurshid ki tarah jo padha hai ash'ar 
Nauha gulshan ne likha sabne suna ro ro kar
Hind se shaam bulaegi tumhe jab khwahar
Ek diya qabr-e-Sakina pe jalana aakar

Shaam walo se ye Abid ne kaha ro ro kar...

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