Kahaa Sughra ne meri jaan Ali Akbar-e-man


कहा सुग़रा ने मेरी जान अली अकबर-ए-मन
पूरा करदो ना ये अरमान अली अकबर-ए-मन
लौट आओ ना वतन

कहा सुग़रा ने मेरी जान अली अकबर-ए-मन
लौट आओ ना वतन 

जबसे तुम घर से गये लुत्फ़-ए-अज़ाँ जाता रहा
लौट आने का जो वादा था वो रुलवाता रहा
चंद लम्हों की हूँ मेहमान
अली अकबर-ए-मन, लौट आओ ना वतन

कहा सुग़रा ने मेरी जान अली अकबर-ए-मन
लौट आओ ना वतन 

ऐसी तन्हाई के तन्हाई को डर लगता है
ऐसे मंज़र है के बिनाई को डर लगता है
घर मुझे लगता है ज़िंदान
अली अकबर-ए-मन, लौट आओ ना वतन

कहा सुग़रा ने मेरी जान अली अकबर-ए-मन
लौट आओ ना वतन 

तेरे होते हुए आबाद थे रस्ते सारे
तीरगी में भी थे आँगन में चमकते तारे
ज़िंदगी हो गई वीरान
अली अकबर-ए-मन, लौट आओ ना वतन

कहा सुग़रा ने मेरी जान अली अकबर-ए-मन
लौट आओ ना वतन 

तू नहीं आता तो इक ख़त ही रवाना कर दे
मेरे जीने का यही एक बहाना कर दे
इतना कहना तो मेरा मान
अली अकबर-ए-मन, लौट आओ ना वतन

कहा सुग़रा ने मेरी जान अली अकबर-ए-मन
लौट आओ ना वतन 

अब ना बाबा से शिकायत है ना अम्माँ से गिला
मैं तो बीमार हूँ बीमार से रिश्ता कैसा
ग़म तो ये है भूली फूफी जान
अली अकबर-ए-मन, लौट आओ ना वतन

कहा सुग़रा ने मेरी जान अली अकबर-ए-मन
लौट आओ ना वतन 

मेरी आँखो में तुम्हें अश्क़ गवारा ही ना थे
तेरे बिन काटूँ ये बीमारी के लम्हे कैसे
मौत है सामने हर आन
अली अकबर-ए-मन, लौट आओ ना वतन

कहा सुग़रा ने मेरी जान अली अकबर-ए-मन
लौट आओ ना वतन 

क़ब्र-ए-ज़हरा पे भी अब जाने की हिम्मत ना रही
अब दिया घर में जलाने की भी ताक़त ना रही
नातवानों का है तूफ़ान
अली अकबर-ए-मन, लौट आओ ना वतन

कहा सुग़रा ने मेरी जान अली अकबर-ए-मन
लौट आओ ना वतन 

कोई झोंका भी हवा का जो इधर आता है
मुझसे पहले मेरा दिल जानिब-ए-दर जाता है
बस है आहट पे लगे कान
अली अकबर-ए-मन, लौट आओ ना वतन

कहा सुग़रा ने मेरी जान अली अकबर-ए-मन
लौट आओ ना वतन 

क्या कभी सोचा बहन दर्द से रोती होगी
लौट के आओ तो वो क़ब्र में सोती होंगी
है बहोत इसका भी इम्कान
अली अकबर-ए-मन, लौट आओ ना वतन

कहा सुग़रा ने मेरी जान अली अकबर-ए-मन
लौट आओ ना वतन 

या तो परदेस से सुग़रा का कफ़न ले आओ
या मेरे जीते हुए अपनी दुल्हन ले आओ
रखो इतना तो मेरा मान
अली अकबर-ए-मन, लौट आओ ना वतन

कहा सुग़रा ने मेरी जान अली अकबर-ए-मन
लौट आओ ना वतन 

क्या कोई अपना वतन छोड़ के यूँ जाता है
शाम को घर में परिंदा भी चला आता है
आए मेरे घर की निगहबान
अली अकबर-ए-मन, लौट आओ ना वतन

कहा सुग़रा ने मेरी जान अली अकबर-ए-मन
लौट आओ ना वतन 

ग़श के आलम में भी "रेहान" था सुग़रा का बया
क्या दम-ए-मर्ग सिरहाने ना पढ़ोगे क़ुरान
अये मेरे बोलते क़ुरान
अली अकबर-ए-मन, लौट आओ ना वतन

कहा सुग़रा ने मेरी जान अली अकबर-ए-मन, लौट आओ ना वतन

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Kahaa Sughra ne meri jaan Ali Akbar-e-man
Pura kardo na ye armaan Ali Akbar-e-man
Laut awo na watan

Kahaa Sughra ne meri jaan Ali Akbar-e-man
Laut aawo na watan 

Jabse tum ghar se gaye lutf-e-azaan jaata raha
Laut aane ka jo waada tha wo rulwaata raha
Chand lamho ki hu mehmaan
Ali Akbar-e-man, laut aawo na watan

Kahaa Sughra ne meri jaan Ali Akbar-e-man
Laut aawo na watan

Aisi tanhaayi ke tanhaayi ko dar lagta hai
Aisi manzar hai ke binaayi ko dar lagta hai
Ghar mujhe lagta hai zindaan
Ali Akbar-e-man, laut aawo na watan

Kahaa Sughra ne meri jaan Ali Akbar-e-man
Laut aawo na watan 

Tere hote huwe aabaad the raste saare
Teergi me bhi the angan mei chamakte tare
Zindagi hogayi veeraan
Ali Akbar-e-man, laut aawo na watan

Kahaa Sughra ne meri jaan Ali Akbar-e-man
Laut aawo na watan 

Tu nahi aata to ik khaat hi rawaana karde
Mere jeene ka yahi ik bahaana karde
Itna kehna to mera maan
Ali Akbar-e-man, laut aawo na watan

Kahaa Sughra ne meri jaan Ali Akbar-e-man
Laut aawo na watan 

Ab na baba se shikayat hai na amma se gila
Mai to beemar hu beemar se rishta kaisa
Gham ye hai bhooli phuphi jaan
Ali Akbar-e-man, laut aawo na watan

Kahaa Sughra ne meri jaan Ali Akbar-e-man
Laut aawo na watan 

Meri ankho mei tumhe ashk gawara hi na the
Tere bin kaatu ye beemari ke lamhe kaise
Maut hai samne har aan
Ali Akbar-e-man, laut aawo na watan

Kahaa Sughra ne meri jaan Ali Akbar-e-man
Laut aawo na watan 

Qabr-e-Zahra pe bhi ab jaane ki himmat na rahi
Ab diya ghar me jalaane ki bhi taaqat na rahi
Natawano ka hai toofaan
Ali Akbar-e-man, laut aawo na watan

Kahaa Sughra ne meri jaan Ali Akbar-e-man
Laut aawo na watan 

Koyi jhoka bhi hawa ka jo idhar aata hai
Mujhse pehle mera dil jaanib-e-dar jaata hai
Bas hai ahat pe lagi kaan
Ali Akbar-e-man, laut aawo na watan

Kahaa Sughra ne meri jaan Ali Akbar-e-man
Laut aawo na watan 

Kya kabhi socha bahan dard se roti hongi
Laut ke aawo to wo qabr me soti hongi
Hai bahaut iska bhi imkaan
Ali Akbar-e-man, laut aawo na watan

Kahaa Sughra ne meri jaan Ali Akbar-e-man
Laut aawo na watan 

Ya to pardes se Sughra ka kafan ley aawo
Ya mere jeete huwe apni dulhan ley aawo
Rakho itna to mera maan
Ali Akbar-e-man, laut aawo na watan

Kahaa Sughra ne meri jaan Ali Akbar-e-man
Laut aawo na watan 

Kya koi apna watan chorr ke yu jaata hai
Shaam ko ghar me parinda bhi chala aata hai
Aye mere ghar ki nigehbaan
Ali Akbar-e-man, laut aawo na watan

Kahaa Sughra ne meri jaan Ali Akbar-e-man
Laut aawo na watan 

Ghash ke aalam me bhi "Rehan" tha Sughra ka bayaa
Kya gham-e-marg sirhaane na parhonge Qur’an
Ay mere bolte Qur’aan
Ali Akbar-e-man, laut aawo na watan

Kahaa Sughra ne meri jaan Ali Akbar-e-man
Laut aawo na watan 

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