के असलहे खामोश हैं एक बेज़बाँ के सामने
मुनफ़रिद आलम में है नन्हे अली का हौसला
एक तबस्सुम से किया पसपा सिपाहे शाम को
है ज़माने से अलग असग़र का अंदाज़े वेग़ा
मार्का सर कर लिया लेकिन न उतरा ख़ाक़ पर
रण में असग़र ने कहीं ना पाँव रखा ख़ाक़ पर
मार्का सर कर लिया लेकिन न उतरा ख़ाक़ पर
चश्मे आलम ने न देखा ऐसा बच्चा ख़ाक़ पर
हर शहीदे कर्बला ने जंग है खुल कर लड़ी
पर अदाए खास थी ये असग़रे मासूम की
हाथ में नैज़ा लिया न तीर न तलवार ली
गर्दने बातिल तबस्सुम की छुरी से काट दी
ज़ुल्म को देखा गया रण में तड़पता ख़ाक़ पर
मार्का सर कर लिया लेकिन न उतरा ख़ाक़ पर
जो सरे मैदाँ वो एक नन्हा मुजाहिद डट गया
ख़ौफ़ से पीछे सितमगारों का लश्कर हट गया
सामने आया जो वो मरहब की सूरत कट गया
जब ज़बाँँ फेरी तो हर ज़ालिम का सीना फट गया
फौजे आदाँ में हुआ कोहराम बरपा ख़ाक़ पर
मार्का सर कर लिया लेकिन न उतरा ख़ाक़ पर
फूल से मुख पर नज़र आता हैै यूसुफ का जमाल
है लिए सीने में अपने हैदरी जाहो जलाल
बंद मुठ्ठी में संभाले है यदुल्लाही कमाल
चंद लम्हों में बदल सकता है ये रंगे जिदाल
जानता है चिल्ला-ए-बातिल गिराना ख़ाक़ पर
मार्का सर कर लिया लेकिन न उतरा ख़ाक़ पर
चश्मे आलम ने न देखा ऐसा बच्चा ख़ाक़ पर
मार्का सर कर लिया लेकिन न उतरा ख़ाक़ पर
अये हुसैन इब्ने अली अये फ़ातमा के महजबीं
ता-अबद कोई तेरा एहसांँ भूला सकता नहीं
दे रही है अब भी ये आवाज़ मक़्तल की ज़मीं
ख़ूने असग़र अगर फ़र्शे गेती पर अगर गिरता कहीं
हश्र तक पैदा न होता एक दाना ख़ाक़ पर
मार्का सर कर लिया लेकिन न उतरा ख़ाक़ पर
आँख है तो पढ़ ले अये दुनिया किताबे कर्बला
देख ले हर दीदावर एक बेज़बाँ का हौसला
सरबुलंदी का जिगर में यूँ है जोशो वलवला
क़त्ल हो कर भी रखा ज़मींवालों से रखा फ़ासला
था सरे बेशीर नैज़े पर ज़माना ख़ाक़ पर
मार्का सर कर लिया लेकिन न उतरा ख़ाक़ पर
क़त्ल जब शब्बीर का हर एक नासिर हो गया
रह गए तनहा सरे मैदाँ जो शाहे कर्बला
नरग़ए कुफ़्फ़ार में देते थे हलमिन की सदा
पहुंची ख़ैमा में जो आवाज़े शहंशाहे होदा
खुद को गहवारे से असग़र ने गिराया ख़ाक़ पर
मार्का सर कर लिया लेकिन न उतरा ख़ाक़ पर
देख कर बेशीर के झूले से गिरने का समाँ
गिर पड़ी नागाह ग़श खाके अली असग़र की माँ
हो गयी बेचैन ख़ैमा में अली की बेटियाँ
सीना-ओ-सर पीट कर बोली बसद आह-ओ-फोगां
या इलाही क्या है ये बच्चा तड़पता ख़ाक़ पर
मार्का सर कर लिया लेकिन न उतरा ख़ाक़ पर
सुनकर आवाज़े फोगां ख़ैमा में आये शाहे दीन
मादरे असग़र से बोले थाम कर क़ल्बे हज़ीं
लाओ मेरे लाल को देखू सरे मक़्तल कहीं
एक क़तरा आब मिल जाये बदस्ते अहले कीं
फ़ौजे आदाँ में शायद कोई ऐसा हो ख़ाक़ पर
मार्का सर कर लिया लेकिन न उतरा ख़ाक़ पर
रण में असग़र ने कहीं ना पाँव रखा ख़ाक़ पर
मार्का सर कर लिया लेकिन न उतरा ख़ाक़ पर
जब सवाले आब शाहे दीं ने आदाँ से किया
हुरमुला के तीर ने छेदा गला बेशीर का
खूं उगल कर दस्ते सरवर पर वो बच्चा मर गया
खोद कर नन्ही सी एक तुर्बत सरे अर्ज़े बला
फूल से बच्चे को शाहे दीन ने रक्खा ख़ाक़ पर
मार्का सर कर लिया लेकिन न उतरा ख़ाक़ पर
गर्दने असग़र से जिस दम ख़ून का दरिया बहा
ले लिया सरवर ने चुल्लू में लहू बेशीर का
ख़ूने नाहक़ से जब राज़ी न हुए अर्ज़ों समां
इस तरह बेटे का खूं सरवर ने चेहरे पर मला
एक क़तरा भी लहू गिरने न पाया ख़ाक़ पर
मार्का सर कर लिया लेकिन न उतरा ख़ाक़ पर
जब सरों के दरमियाँ असग़र का सर हाज़िर ना था
ढूंढ़ने निकले सितमगर बर सरे अर्ज़े बला
अश्किया नैज़े चुभोते थे ज़मीन पर जा बजा
होके पैवस्ता सिना ने ज़ुल्म से वा हसरता
क़ब्र से अली असग़र का लाशा आया ख़ाक़ पर
मार्का सर कर लिया लेकिन न उतरा ख़ाक़ पर
हश्र तक करते रहेंगे हम ये ज़िक्रे कर्बला
हैं हमारा दीनो इमां मजलिसे शाहे होदा
अहले मातम जब बिछाते है "हसन" फ़र्शे अज़ा
छोड़ कर जन्नत चली आती हैं बीबी फ़ातमा
ज़िक्र असग़र का जहाँ होता है ख़ाक़ पर
मार्का सर कर लिया लेकिन न उतरा ख़ाक़ पर
मार्का सर कर लिया लेकिन न उतरा ख़ाक़ पर
रण में असग़र ने कहीं ना पाँव रखा ख़ाक़ पर
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