अब्बास चले आओ अब्बास
क्या चैन से सोते हो ,दरया के कनारे पर
छोड़ आए सकीना को हो किसके सहारे पर
दर पर है खड़ी कब से लगाये हुए वोह आस
अब्बास चले आओ अब्बास
है यूँ तो शहे दीन ने मक़तल की रज़ा दे दी
किस तरहा उठाएँगे मय्यत अली अकबर की
भाई की ज़ईफ़ी का ज़रा कुछ करो अहसास
अब्बास चले आओ अब्बास
शब्बीर की नज़रों में तारीक ज़माना है
उलझा हुआ बरछी में अकबर का कलेजा है
हमशक़्ले नबी का भी उदूँ ने न किया पास
अब्बास चले आओ अब्बास
ख़ैमों में रवाँ हर सूँ एक आग का दरिया है
और पुश्त पे ज़ैनब के बीमार भतीजा है
औलादे पयम्बर का उदूँ ने न किया पास
अब्बास चले आओ अब्बास
कुछ तुमको ख़बर भी है क्या ये है पता तुमको
खाती थी तमाचे और देती थी सदा तुमको
दुर्रो से बुझाई गई मासूम की जब प्यास
अब्बास चले आओ अब्बास
सुनते हैं ज़ैनब के बाज़ू में रसन होगी
दरबारे सितम होगा सर नंगे बहन होगी
आँखों से लहू रोयेंगे सज्जाद बसद आस
अब्बास चले आओ अब्बास
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